यह है भारत का नया अब्दुल कलाम नाम है बाबर कहानी सुनना चाहोगे संपादकीय नीरज
झांसी जहां चाहे वही राह है कुछ ऐसे भी लोग हैं जो हमेशा सुर्खियों में नहीं बनना चाहते वह शायद ऐसी में नहीं सोते हैं लेकिन एक मिसाल कायम कर जाते हैं ऐसे ही एक शिक्षक का नाम है बाबर वह कोई बड़े इंस्टीट्यूट या किसी नामी गिरामी स्कूल की पहचान नहीं है लेकिन इनकी पहचान सबसे अनोखी है आइए बताते हैं आपको इनके बारे में जो अपनी महानता सिर्फ लगन मेहनत इमानदारी से करना चाहते हैं ऐसी कहानी शायद बोरियत भरी हो लेकिन जीवन का एक वह पहलू है जिसे समझने के बाद सफलता आपके कदम चूमेगी उनके साहस को समझना आवश्यक है 9 साल की उम्र में शिक्षक बने बाबर नाम है इनका बाबर अली ने एक बात साबित की है की शिक्षा देने की कोई उम्र नहीं होती लेकिन लेने की भी कोई उम्र नहीं होती आप किसी भी उम्र में कोई भी चीज को ग्रहण कर सकते हैं ऐसे ही 9 साल की उम्र में बाबर अली ने शिक्षा देना प्रारंभ कर दी और सबसे खास बात वह 15 साल की उम्र में खुद उसी स्कूल के प्रधानाध्यापक बने और इन्हीं के नाम सबसे कम उम्र का दुनिया में हेड मास्टर बनने का खिताब भी है 21 साल के बाबर अली 9 साल की उम्र से लगातार पढ़ा रहे हैं ना कोई नाम है ना कोई पहचान है नाउ चा रसूख है ना ऊंचा घर है ना कोई ऊंची दुकान है अब उनके स्कूल में 300 बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं और वह खुद 15 साल की उम्र में जहां पढ़ती थी वही हेड मास्टर बन गए सबसे खास बात गरीबी के कारण वह स्कूल से पढ़कर आने के बाद उन बच्चों को शिक्षा दे देते थे जिन्हें आवश्यकता थी क्योंकि इसको वह स्वयं महसूस करते थे संघर्ष के दिनों में वह अपने स्कूल से टूटी हुई चौक के टुकड़े लेकर उन बच्चों को पढ़ाते थे जिन गरीब किसान और उनके बच्चे खेतों में काम करते थे और बच्चों को जैसी सुविधा हो उसी के अनुसार पढ़ाते थे l
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