चेहल्लुम की समापन मजलिस और मातमी जुलूस “नारा-ए-हुसैनी-या हुसैन “ प्रेरणा देता है देश भक्ति और-मानव कल्याण की-मौलाना फ़राज़ वास्ती ।
झाँसी / “चेहल्लुम-ए-शोहादा-ए-करबला” के ग़मगीन अवसर पर ‘अंजुमन-ए-अलविया’ के तत्वाधान में ‘इमाम बारगाह –नूर मंज़िल’ दरीगरान में अंतिम मजलिसे अज़ा हुई और मातमी जुलूस निकला। जिसमें सैकड़ों शोकाकुल श्रृध्दालुओं ने शिरकत की।मर्सियाख्वानी में इं0 काज़िम रज़ा, साहबे आलम, हाजी तक़ी हसन और साथियों ने “ आज है चालीसवां हज़रते शब्बीर का- तशनादहन कुश्ता-ए-ख़ंजरो तक़दीर का” मर्सिया पढा।
तीन वर्षीय शोएब आलम ने रुबाई,”कहती थी सकीना, ख़तरे बाबा देखा। भैय्या अली असग़र का हमने लाशा देखा।” पढ़ कर सबको भाव विभोर कर दिया।
संचालन करते हुऐ सैयद शहनशाह हैदर आब्दी ने कहा,” हमारे मज़हब ने मुल्क से मुहब्बत को ईमान की निशानी बताया है। अत: यह हमारी न केवल सामाजिक बल्कि धार्मिक ज़िम्मेदारी भी बन जाती है कि हम धार्मिक आयोजनों में भी ऐसे कार्यों को प्राथमिकता दें जिनसे आपसी प्रेम और विश्वास बढे साथ ही देश और समाज का भी भला हो।
तदोपरांत सेथल से विशेष निमंत्रण से पधारे मौलाना सैय्यद इक्तिदार अली “फ़राज़” वास्ती साहब ने कहा,” इमाम हुसैन ने करबला के मैदान में मज़हब, इंसानियत, इंसाफ, सब्र, क़ुर्बानी, अमन, मोहब्बत और आपसी यक़ीन की नई तारीख़ लिखी I नौ जवानो तुम देश और समाज का मुस्तक़बिल हो इसलिये याद रखो “नारा-ए-हुसैनी –या हुसैन “ केवल एक नारा नही है I बल्कि इसके पीछे इंसानियत, इंसाफ, सब्र, क़ुर्बानी, अमन, मोहब्बत और आपसी यक़ीन की पूरी दास्तान है, भूखों और प्यासों की मदद का पैगाम है I I इस पर अमल कर देश और समाज का भला करो और इंसानियत की राह में अपना निशान छोड़ो I यही सच्चा नज़राना-ए-अक़ीदत है इमाम हुसैन की शान में I इसके पश्चात मौलाना साहब ने करबला में इमाम ज़ैनुल आबेदीन और बीबी ज़ैनब अलैहिस्सलाम और आले रसूल पर हुऐ बर्बरता पूर्ण अत्याचार का वर्णन किया Iजिसे सुनकर अज़दारों की आंखों से बेसाख़ता आंसू निकल पड़े I
इसी ग़मगीन माहौल में “गम है सकीना को यह अब्बास का, नहर से अब तक नहीं आये चचा ।“ की मातमी सदाओं के साथ नौहा-ओ-मातम हुआ, अलमे मुबारक का जुलूस बरामद हुआI अंजुमने अब्बासिया, अनजुमने अकबरिया, हुसैनी ग्रुप, अंजुमने हुसैनी और अंजुमने सदाये हुसैनी के मातम दारों ने किया। नौहा ख़वानी बहेरा सादात से पधारे सर्व श्री असद आब्दी एवं हाशिम आब्दी, साहबेआलम, अली समर, इंतज़ार मेहदी, शोएब हसन, अदीब हैदर, रानू नक़वी, लकी और साथियों ने की।अध्यक्षीय भाषण में मौलाना सैयद शाने हैदर ज़ैदी इस प्रकार शिक्षाप्रद और प्रेरणास्पद कार्यक्रमों के आयोजनों देश और समाज के उत्थान के लिये आवश्यक बताया । मातमी जुलूस शहर के मुख्य मार्गों से ह़ोता हुआ, राजा गंगाधर राव की समाधि के पास स्थित करबला पर समाप्त हुआ।
अंत में श्री तक़ी हसन ने प्रेस, प्रशासन, पुलिस, सहयोगी अंजुमनों और अज़ादारों का आभार ज्ञापित किया और मौलाना साहब ने समस्त विश्व के कल्याण के लिये प्रार्थना की और अज़ादारों ने “आमीन” कहा I साम्प्रदायिक सौहार्द का परिचय देते हुए भाई वीरेंद्र अग्रवाल, नगर धर्म गुरु पंडित बसंत विष्णु गोलवलकर, बृजेंद्र व्यास डम डम महाराज, नरेंद्र झा और साथियों ने अलमे मुबारक पर पुष्पांजलि अर्पित की और मातमदारों गुलाब जल छिड़का।
इस अवसर सर्व श्री हाजी सईद साहब, अरशद आब्दी, ज़ायर सग़ीर मेंहदी, ताज अब्बास, अता अब्बास, मोहम्मद अब्बास, हाजी कैप्टन सज्जाद अली, क़मर आलम, रईस अब्बास, सरकार हैदर” चन्दा भाई”, नज़र हैदर “फाईक़ भाई”, आरिफ गुलरेज़, नजमुल हसन, सुल्तान आब्दी, ज़ाहिद मिर्ज़ा, मज़ाहिर हुसैन, आलिम हुसैन, ताहिर हुसैन, ज़ामिन अब्बास, राहत हुसैन, ज़मीर अब्बास, आबिस रज़ा, सलमान हैदर, अली जाफर, अली क़मर, फुर्क़ान हैदर, निसार हैदर “ज़िया”, मज़ाहिर हुसैन, आरिफ रज़ा, इरशाद रज़ा, असहाबे पंजतन, जाफर नवाब, काज़िम जाफर, वसी हैदर, नाज़िम जाफर, नक़ी हैदर, जावेद अली, क़मर हैदर, शाहरुख़, ज़ामिन अब्बास, ज़ाहिद हुसैन” “इंतज़ार”, अख़्तर हुसैन, नईमुद्दीन, मुख़्तार अली, ज़ीशान हैदर के साथ बडी संख्या में इमाम हुसैन के अन्य धर्मावलम्बी अज़ादार और शिया मुस्लिम महिलाऐं बच्चे और पुरुष काले लिबास में उपस्थित रहे ।
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